सिंगाजी का जन्म ग्राम खजूरी जिला बड़वानी मध्यप्रदेश मे हुआ।  का नामकरण उन्ही के नाम पर किया गया है। सिंगाजी मध्य प्रदेश में खण्डवा से 28 मील उत्तर पूर्व में हरसूद तहसील का एक छोटा गाँव है। हरसूद का निर्माण हर्षवर्धन द्वारा किया गया था। इसी गाँव में सिंगाजी एक सामान्य गवली परिवार में जन्मे थे।16वीं शताब्दी में सिंगाजी की प्रतिभा से प्रेरित होकर गाँव के जमींदार ने उन्हें अपना सरदार नियुक्त कर दिया था। सिंगाजी ने बारह साल जमींदार की सेवा की तथा अपनी आध्यात्मिक करामाती शक्तियों से जमींदार के लिए कई लड़ाइयों में विजय भी प्राप्त की। कुछ स्रोतों के अनुसार उन्होने भामागढ़ के राजा के पत्रवाहक का कार्य भी किया था। परंतु कालांतर में उन्होने सन्यास ले लिया व तपस्वी बन गए। 40 वर्ष की आयु में उन्होंने  समाधि ले ली |

कहते है सनातन संस्कृति में कोई ऐसा काल खंड नहीं रहा जब भारत भूमि ने कोई महापुरुष या कोई संत को जन्म नहीं दिया, या यु कहे की जब-जब अधर्म बड़ा तब-तब प्रकृति ने सनातन धर्म के प्रचार के लिया संत महात्माओं को जन्म दिया. ऐसे ही एक महान दार्शनिक संत का नाम है श्री संत सिंगाजी..!

संत शिरोमणि सिंगाजी महाराज का जन्म मध्यप्रदेश के जिला- बड़वानी, तहसील- राजपुर के एक छोटे से ग्राम- खजूरी में सम्वत् 1576 में मिति वैषाख सुदी नवमी, दिन- बुधवार को पुष्प नक्षत्र में प्रातः 6:00 बजे हुआ था । पिता भीमाजी गवली और माता गऊरबाई की तीन संतान थी । बड़े भाई लिम्बाजी, स्वयं संत सिंगाजी और बहन का नाम कृष्णाबाई था । संत सिंगाजी महाराज का जसोदाबाई के साथ विवाह हुआ था । संत सिंगाजी महाराज के चार पुत्र थे ! जिनके नाम कालुबाबा , भोलुबाबा , सदूबाबा और दीपूबाबा थे। शास्त्रों के जानकारों का मत है की श्रृंगी ऋषि ने ही संत सिंगाजी के रूप में जन्म लिया था । सिंगाजी महराज की वाणियों से ही यह जानकारी मिलती है, की श्रृंगी ऋषी का चौथा अवतार है, लोक देवता संत सिंगाजी । वह चार अवतार श्रृंगी, सिंग, नरसिंग एवं सिंगाजी है ।

संत सिंगाजी को मालवा-निमाड़ का कबीर भी कहा जाता है ,इन्होने जीवन दर्शन को लेकर बेबाकी से अपनी बात को समाज के बिच रखा, उन्होंने आत्मा को ही परमात्मा कहा है ..

कहे सिंगा बाहर भीतर पूरी रहा, अंतर नहीं लगार
अपने नयन देखि लेवो, ना कछु वार नी पार !!

सिंगाजी ने अपने दार्शनिक पक्ष में कहा है की इंसान बाहरी दुनियां में घूमता रहता है, लेकिन अंतर्धयान नहीं करता, बाहर ईश्वर की खोज करता है…आगे सिंगाजी कहते है अपनी आँखों से अपने अंदर झाँख तेरा ईश्वर तुझ मैं ही है… !!

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