|| श्री सन्त सिंगाजी ||

जन्म

संत सिंगाजी महाराज का जन्म वैशाख सुदी नवमी दिन बुधवार को ग्राम खजूरी मे बाबा भिमाजी के यहाँ पर हुआ था 

संत सिंगाजी महाराज  भारत  में  मध्य प्रदेश के निमाड़ के एक मशहूर संत थे। उन्हे पशु रक्षक देव के रूप में पूजा जाता है।

संत सिंगाजी को 16वीं  या 17वीं शताब्दी  के काल का माना जाता है। कहा जाता है कि सिंगाजी एक कवि व करामाती संत थे

जीवन परिचय

सिंगाजी का जन्म ग्राम खजूरी जिला बड़वानी मध्यप्रदेश मे हुआ।  का नामकरण उन्ही के नाम पर किया गया है। सिंगाजी मध्य प्रदेश में खण्डवा से 28 मील उत्तर पूर्व में हरसूद तहसील का एक छोटा गाँव है। हरसूद का निर्माण हर्षवर्धन द्वारा किया गया था। इसी गाँव में सिंगाजी एक सामान्य गवली परिवार में जन्मे थे।16वीं शताब्दी में सिंगाजी की प्रतिभा से प्रेरित होकर गाँव के जमींदार ने उन्हें अपना सरदार नियुक्त कर दिया था। सिंगाजी ने बारह साल जमींदार की सेवा की तथा अपनी आध्यात्मिक करामाती शक्तियों से जमींदार के लिए कई लड़ाइयों में विजय भी प्राप्त की। कुछ स्रोतों के अनुसार उन्होने भामागढ़ के राजा के पत्रवाहक का कार्य भी किया था। परंतु कालांतर में उन्होने सन्यास ले लिया व तपस्वी बन गए। 40 वर्ष की आयु में उन्होंने  समाधि ले ली

व्यापक मान्यता

संत सिंगाजी को 16वीं  या 17वीं शताब्दी  के काल का माना जाता है। कहा जाता है कि सिंगाजी एक कवि व करामाती संत थे। समूचे मध्य प्रदेश में अनेकों स्थानों पर सिंगाजी के डेरे  व समाधियाँ बनी हुयी हैं जहां पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है। कवि संत सिंगाजी के आध्यात्मिक गीत आज तक गए जाते हैं।

संत सिंगाजी जलाशय परियोजना

नर्मदा जलविद्युत विकास निगम द्वारा नर्मदा नदी परi विकसित की गयी नर्मदा सागर परियोजना में संत सिंगाजी जलाशय भी परियोजना का भाग है जी 913 वर्ग मीटर में फैला है। यह भारत का सबसे बड़ा व एशिया का दूसरा सबसे बड़ा जलाशय है  यहाँ पर सिंगाजी की पावन समाधि का भी निर्माण किया गया है।सिंगाजी परियोजना की अनुमानित लागत 5 करोड़ है।

श्री संत सिंगाजी मेला

निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी मेला शरद पूर्णिमा से शुरू हो  जाता है। इस पूरे आयोजन के दौरान करीब ढाई लाख से ज्यादा श्रद्धालु सिंगाजी महाराज की समाधि पर मत्था टेकने आते हैं। शरद पूर्णिमा से यह मेला लगता है। निमाड़ की संस्कृति और परंपरा इस मेले में दिखती है। इसलिए यह मेला विदेशों तक अपनी पहचान बना चुका है।
निमाड़ की आस्था के प्रतीक इस मेले में झाबुआ, बड़वानी, बैतूल, खरगोन के अलावा महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों के श्रद्धालु भी आ रहे हैं। सिंगाजी समाधि पर मुख्य रूप से घी, नारियल, चिरोंजी का प्रसाद चढ़ाया जा रहा है। जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है, वे यहां भंडारा भी करते हैं।
संत सिंगाजी को निमाड़ का कबीर भी कहा जाता है। आज भी निमाड़ में उनके जन्म स्थान व समाधि स्थल पर उनके पदचिह्नों की पूजा-अर्चना की जाती है। उनके चमत्कार आज भी लोग महसूस करते हैं। वे नर्मदांचल की महान विभूति थे। पशुपालक उन्हें पशु दूध और घी अर्पण करते हैं। इन स्थानों पर घी की अखण्ड ज्योत भी प्रज्वलित रहती है।

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